सम्राट अशोक महान(Emperor Ashoka the Great)

सम्राट अशोक महान
(Emperor Ashoka the Great)

सम्राट अशोक महान



247ई॰पू॰ मे अशोक महान मौर्य साम्राज्य का उत्तराधिकारी हुआ। इससे पहले वह पश्चिम उत्तर प्रदेश का शासक रह चुका था, जिसकी, विश्वविद्यालय की नगरी तक्षशिला थी। उस समय साम्राज्य के भीतर भारत का बहुत बड़ा भाग आ गया था और उसका विस्तार मध्य शतक हो चुका था। केवल दक्षिण -पूर्व और दक्षिण का एक भाग उसके अधिकार क्षेत्र में नहीं आ पाए थे। संपूर्ण भारत को एक शासन व्यवस्था के मातहत इकट्ठा करने के पुराने सपने ने अशोक को प्रेरित किया और उसने तत्काल पूर्वी तट के कल प्रदेश को जीतने की ठान ली।कलिंग के लोगों के बहादुरी से मुकाबला करने के बावजूद अशोक की सेना जीत गई। इस युद्ध में भयंकर कत्लेआम हुआ।जब इस बार की खबर अशोक को मिली तो उसे बहुत पछतावा हुआ और युद्ध से‌ विरक्ति हो गई। बुद्ध की शिक्षा के प्रभाव से उसका मन दूसरे क्षेत्रों में विजय हासिल करने और साहसिक काम करने की ओर घूम गया। अशोक के विचारों और कर्मों के बारे में हमें फरमानो से जानकारी मिलती है जो उसने जारी किए और जो पत्थर और धातु पर खोदे गए। यह फरमान पूरे भारत में फैले है और अभी भी मिलते हैं।कलिंग और साम्राज्य में मिलाए जाने के ठीक बाद ही महामहिम सम्राट ने धर्म के नियमों का उत्साह पूर्वक पालन, उन नियमों के प्रति प्रेम और उसको (धर्म को) अंगीकार करना आरंभ कर दिया। उनके एक फरमान में कहा गया कि अशोक अब आगे किसी प्रकार की हत्या या बंदी बनाए जाने को सहन नहीं करेगा। कलिंग में मरने और बंदी बनाए जाने वाले लोगों के सौवें- हज़ारवे हिस्से को भी नहीं। सच्ची विजय कर्तव्य और धर्म पालन करके लोगों के हृदय को जीतने में है।फरमान में आगे कहा गया है-"इसके अलावा, यदि कोई उनके साथ बुराई करेंगा तो उसे भी जहां तक संभव होगा महामहिम सम्राट को झेलना होगा। महामहिम सम्राट की यह आकांक्षा है कि जीव-मात्र की रक्षा हो, उनमें आत्म-संयम हो, उन्हें मन की शांति और आनंद प्राप्त हो। इस अद्भुत शासक ने, जिसे आज भी भारत और एशिया के बहुत से दूसरे भागों में प्यार से याद किया जाता है, अपने आपको बु की शिक्षा के प्रचार मे, लेगी और सद्भाव के काम में तथा प्रजा के हित के लिए सार्वजनिक कार्यों के प्रति समर्पित कर दिया। उसने ऐलान कर दिया था कि वह इनके लिए हमेशा तैयार है। हर स्थान पर और हर समय, सरकारी कर्मचारी जनता के कार्यों के बारे में उसे बराबर सूचना देते रहें, चाहे जिस समय और जहां भी हो वह लोग-हित के लिए अवश्य काम करेगा। खुद कट्टर बोध होने पर भी उसमें दूसरे धर्मों को बराबर आदर और महत्व दिया। अशोक बहुत बड़ा निर्माता भी था। उसने अपनी कुछ बड़ी इमारतों को बनाने में मदद के लिए विदेशी कारीगरों को रख छोड़ा था। यह नतीजा एक जगह इकट्ठे बने स्थलों के डिजाइन से निकाला गया है जो पर्सिपोलिस की याद दिलाते हैं। लेकिन इस शुरुआत की मूर्तिकला और दूसरे अवशेषों में भी भारतीय कला-परंपरा की विशेषताएं दिखाई पड़ी। 41 साल तक अनवरत शासन करने के बाद ई॰पू॰ 232 में अशोक की मृत्यु हो गई। एच॰जी॰ वेल्स ले अपनी आउटलाइन ऑफ़ हिस्ट्री में लिखा है कि बादशाहों के दसियोऺं हजार नामों में उसने इतिहास के पृष्ठ भरे हैं, जिनमें बड़े-बड़े राजे- महाराजे, शहंशाह और नामी-गिरामी शासक शामिल हैं, अशोक का नाम अकेला सितारे की तरह चमक रहा है।‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌ वोल्गा से जापान तक आज भी उसका नाम आदर से लिया जाता है।

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